उठ ना! के फिर चलना हि तुझे,
उदय हो! के गम को अस्त करना है तुझे।
चल आ, आज कर्म कि कश्ती बांध ले,
अपार जो था रह गया था,
वह महासागर पार करना है तुझे!
उठ ना! के फिर चलना हि तुझे!
एक अंगारा सा था जो शान्त हो रहा,
माना कि सुर्य नहीं है तूं,
पर मशाल सा रोशन होना है तुझे!
उठ ना! के फिर चलना हि तुझे!
अग्नि में जाकर स्वर्ण सा तपना है,
करना सच तूने अपना हर सपना है,
सबसे जीत कर सबको जीतना है तुझे!
उठ ना! के फिर चलना हि तुझे!
माना के मंजिल दूर है,
अढचने भी भरपूर हैं,
हर गम को पार करना है तुझे!
उठ ना! के फिर चलना हि तुझे!
उठ ना! के फिर चलना हि तुझे,
उदय हो! के गम को अस्त करना है तुझे!!!
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